लेकिन लोंगों को अर्थ नहीं मालूम है ।
और यीशु मसीह का विरोध करते हैं।
स्लोक पढ़े...
1-ओम् श्री ब्रम्हपुत्राय नमः -
हे प्रभु, परमेष्वर के पुत्र, तेरी स्तुति हो
2-ओम् श्री उमात्तया नमः -
पवित्र आत्मा से जन्मने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
3-ओम् श्री कन्नी सुताय नमः -
कुआँरी से जन्मने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
4-ओम् श्री दरिद्र नारायण नमः -
हमारे लिये गरीब होने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
5-ओम् श्री विघिष्र्टिया नमः -
सुंता होने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
6-ओम् श्री पंचघायम् नमः -
अपने शरीर पर पाँच घाव धरनेवाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
7-ओम् श्री वक्ष शल अरुथाया नमः- त्रिषूल जैसे दिखनेवाले वृक्ष पर स्वयं का बलिदान चढ़ाने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
8-ओम् श्री मृत्युजंयम् नमः-
मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
9-ओम् श्री शिबिलिस्तया नमः -
अपना माँस संन्तो को खाने के लिये देने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
10-ओम् श्री दतशिना नमः -
स्वर्गीय पिता के बाजू में बैठने वाले हे प्रभु, तेरी स्तुति हो।
11-ओम् श्री महा देवयया नमः-
प्रभुओं के प्रभु, तेरी स्तुति हो।
"सो यह मंत्र परमेश्वर के पुत्र प्रभु यीशु को समर्पित होते है. ना की किसी व्यक्तिविशेष को"
भारतीय ग्रन्थो में मूर्ति पूजा का विरोध किया गया है!
यजुर्वेद-23:3
ना तस्त प्रतिमा अस्ति:
(इसकी इजाजत नहीं की तुम परमेश्वर की मूर्ति बनाना)
गरुड़ पुराण धर्म कांड परेत खंड-38:13
इश्वर ना तो लकड़ी में है!
ना पत्थर में' और ना मिट्ठी से बनी मूर्ति में !
श्रीमद्भगवद महापुराण-11:84-10
मिट्ठी पत्थर वगैरह की मुर्तिया इश्वर नहीं होती !
श्रीमद्भगवद गीता-9:11
मेरे गुणों को ना जाननेवाले मुर्ख लोग मुजे शरीर वाला समजकर मेरा अपमान करते है!
यजुर्वेद-40:1
इश्वर हर जगह रहनेवाला नूर (light) है !
यजुर्वेद -3:32
इश्वर की कोई मूर्ति नहीं
उसका नाम ही महान है !
यजुर्वेद -32:3
वेह लोग अंधेरे की गहराई में डूब जाते है जो असम्भूति ( material in basic form )
जैसे आग 'पानी' वगैरह की पूजा करते है!
वेह लोग इसमें भी गहरे अँधेरे में डूब जाते है , जो सम्भूति से बनी चिजों की *पूजा* करते है
( मूर्ति वगैरा)
गीता -15:17
अविनाशी परमेश्वर तो कोई ओइ और (उत्तम पुरुष' परमात्मा महाविराट पुरुष, ऋग्वेद- प्रजापति)
मूंडक उपनिषद
वो परमात्मा है!
आप लोग खुद सर्च कर सकते है!